15 अगस्त 2016 को देश आजादी की 70वीं सालगिरह मनाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आजादी के लिए देशवासियों को कितना संघर्ष करना पड़ा था, कितनी कुर्बानियां देनी पड़ी थीं। भारत की आजादी के लिए 1757 से 1947 के बीच कई संघर्ष हुए। इन्हीं संघर्षों का नतीजा है कि आज हम आजादी की खुली हवा में सांस ले रहे हैं। आईए जानते हैं भारत की आजादी से जुड़ी यह अविश्वनीय कहानियां…

भारत की आजादी का इतिहास

ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन
ईस्ट इंडिया कंपनी एक निजी व्यापारिक कंपनी थी, जिसने 1600 ई. में शाही अधिकार पत्र द्वारा व्यापार करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था। 1708 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रतिद्वन्दी कम्पनी ‘न्यू कम्पनी’ का ‘ईस्ट इण्डिया कम्पनी’ में विलय हो गया। परिणामस्वरूप ‘द यूनाइटेड कम्पनी ऑफ़ मर्चेंट्स ऑफ़ इंग्लैण्ड ट्रेडिंग टू ईस्ट इंडीज’ की स्थापना हुई। कम्पनी और उसके व्यापार की देख-रेख ‘गर्वनर-इन-काउन्सिल’ करती थी।
1757 प्लासी का युद्ध
प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे ‘प्लासी’ नामक स्थान में हुआ था। इस युद्ध में एक ओर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना थी तो दूसरी ओर थी बंगाल के नवाब की सेना। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नबाव सिराजुद्दौला को हरा दिया था। युद्ध को भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है क्योंकि यहीं से भारत की दासता की कहानी शुरू होती है। पलासी के युद्ध के बाद ब्रिटिश भारत में राजनीतिक सत्ता जीत गए और 200 साल तक राज किया।
ब्रिटिश सरकार की विस्तारवादी नीति…
– 1757 में प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराने के बाद कर बंगाल पर अधिकार कर लिया। 
– प्लासी की लड़ाई के बाद 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट लाया गया।
– एक्ट का उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी की गतिविधियों को ब्रिटिश सरकार की निगरानी में लाना था।
– इसी एक्ट के तहत भारत में गवर्नर-जनरल का पद की सृष्टि की गई।
– सबसे पहले वारेन हेस्टिंग्स इस पद पर नियुक्त हुए वे 1774 से 1786 तक इस पद पर रहे।
– इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने भारत में विस्तारवाद की नीति पर काम करना शुरू कर दिया।
– 1792 में कंपनी ने टीपू सुल्तान को हराकर दक्कन (दक्षिण)पर अपनी पकड़ मजबूत की। 
– 1819 में मराठो को हारने के बाद कंपनी ने देश में बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में कर लिया। 
– तब भारत कुल विश्व व्यापार में 23% की भागीदारी रखता था जबकि ब्रिटेन मात्र 1.5% था।
– 1848 में लॉर्ड डलहौजी उत्तर-पश्चिमी भारत में अपना मजबूत शासन स्थापित कर रहे थे।
– लेकिन नाराज और असंतुष्ट सैनिकों ने विद्रोह कर दिया 
– जिसे आमतौर पर ‘1857 का विद्रोह’ या ‘1857 के गदर’ के तौर पर जाना जाता है। 
– हालांकि ब्रिगेडियर नील जेम्स ने 11 जून को इस विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया।
– लेकिन विद्रोह के बाद 1858 में कंपनी को समाप्त कर दिया गया।
– भारत की सत्ता सीधे ब्रिटेन के सम्राट के अधीन आ गई।
– गवर्नर-जनरल के पद को वाइसराय कर दिया गया।
– लॉर्ड कैंनिंग को पहले वायसराय का पद प्रदान किया गया।
1857 का विद्रोह
– यह गदर मेरठ में सैनिकों के विद्रोह से शुरु हुआ। उनके विद्रोह का कारण वो नई कारतूस थी जो नई एनफील्ड राइफल में लगती थी। 
– इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी से बना ग्रीस था जिसे सैनिक को राइफल इस्तेमाल करने की सूरत में मुंह से हटाना होता था। 
– यह हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के सैनिकों को धार्मिक कारणों से मंजूर नहीं था और उन्होंने इसे इस्तेमाल करने से मना कर दिया था जिसके चलते वो बेरोजगार हो गए। 
– जल्दी ही यह विद्रोह फैल गया खासकर दिल्ली और उसके आसपास के राज्यों में।
– इस विद्रोह ने दिल्ली, अवध, रोहिलखंड, बुंदेलखंड, इलाहाबाद, आगरा, मेरठ और पश्चिमी बिहार को सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
– हालांकि तब भी 1857 का विद्रोह असफल कहलाया और एक साल के भीतर ही खत्म हो गया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
– ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना 28 दिसम्बर, 1885 ई. में दोपहर बारह बजे बम्बई में ‘गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज’ के भवन में की गई थी। 
– इसके संस्थापक ‘ए.ओ. ह्यूम’ थे और प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्‍द्र बनर्जी बनाये गए थे। 
– ‘भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस’ में कुल 72 सदस्य थे, जिनमें महत्त्वपूर्ण थे- दादाभाई नौरोजी, फ़िरोजशाह मेहता, दीनशा एदलजी वाचा थे। 
– इसका मुख्य लक्ष्य मध्यमवर्गीय शिक्षित नागरिकों के विचारों को आगे रखना था।
1906 में कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन
– कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन 1906 ई. में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में सम्पन्न हुआ। 
– इस अधिवेशन में नरम दल तथा गरम दल के बीच जो मतभेद थे, वह उभरकर सामने आ गये। 
– इन मतभेदों के कारण अगले ही वर्ष 1907 ई. के ‘सूरत अधिवेशन’ में कांग्रेस के दो टुकड़े हो गये।
– अब कांग्रेस पर नरमपंथियों का कब्जा हो गया, इस अधिवेशन में चार प्रस्तावों को पास करवाने में सफल रहा-
          #स्वराज्य की प्राप्ति
          #राष्ट्रीय शिक्षा को अपनाना
          #स्वदेशी आन्दोलन को प्रोत्साहन देना
          #विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करना
1905 में बंगाल विभाजन
– लॉर्ड कर्जन 1899 में भारत का वाइसराय बनकर आए। 1905 में उन्होंने बंगाल विभाजन का कर दिया। 
– विभाजन के सम्बन्ध में कर्ज़न का तर्क था कि तत्कालीन बंगाल, जिसमें बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे।
– काफ़ी विस्तृत है और अकेला लेफ्टिनेंट गवर्नर उसका प्रशासन भली-भाँति नहीं चला सकता है। 
– इसके फलस्वरूप पूर्वी बंगाल के ज़िलों की प्राय: उपेक्षा होती है, जहाँ मुसलमान अधिक संख्या में हैं। 
– इसीलिए उत्तरी और पूर्वी बंगाल, ढाका तथा चटगाँव डिवीजन में आने वाले पन्द्रह ज़िलों को असम में मिला दिया गया।
– पूर्वी बंगाल तथा असम नाम से एक नया प्रान्त बना दिया गया और उसे बंगाल से अलग कर दिया गया।
1909 में मॉर्ले मिंटो सुधार
– मॉर्ले मिंटो सुधार को 1909 ई. का ‘भारतीय परिषद अधिनियम’ भी कहा जाता है। 
– तत्कालीन भारत सचिव जॉन मार्ले एवं वायसराय लॉर्ड मिण्टो ने सुधारों का ‘भारतीय परिषद एक्ट, 1909’ पारित किया, जिसे ‘मार्ले मिण्टो सुधार’ कहा गया।
– भारतीय परिषद सदस्यता के लिए निर्वाचक सिद्धान्त प्रस्तुत किया, साथ ही मुसलमानों के लिए अगल निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की गई।
– मार्ले-मिंटो सुधारों हकीकत में लक्ष्य विकास करने की जगह हिंदू और मुस्लिमों में मतभेद पैदा करना था।
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन और महात्मा गांधी
– 1914-1918 के प्रथम विश्व युद्ध के बाद महात्मा गांधी भारत लौटे और देश की हालत समझकर अहिंसक आंदोलन ‘सत्याग्रह’ के तौर पर शुरु किया। 
– 1917 में बिहार में चम्पारन में सत्याग्रह का नेतृत्व किया।
– 1920 में ब्रिटिश सरकार द्वारा निष्पक्ष व्यवहार ना होता देख असहयोग आंदोलन शुरु किया। 
– 1921 में बम्बई में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई, साम्प्रदायिक हिंसा के विरुद्ध बम्बई में 5 दिन का उपवास, व्यापक अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ किया।
– 1922 में चौरी-चौरा की हिंसक घटना के बाद जन-आन्दोलन स्थगित किया, उनपर राजद्रोह का मुकदमा चला तथा 6 वर्ष कारावास का दण्ड दिया गया।
– 1924 में बेलगाम कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए।
– 1927 में बारदोली सत्याग्रह सरदार पटेल के नेतृत्व किया।
– 1928 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन मे भाग लिया-पूर्ण स्वराज का आह्वान।
– 1930 में ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह- साबरमती से दांडी तक की यात्रा का नेतृत्व किया।
– 1931 में गांधी इरविन समझौता- द्वितीय गोलमेज परिषद के लिये इंग्लैण्ड यात्रा की।
– 1934 में अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की।
– 1936 में वर्धा के निकट से गाँव का चयन जो बाद में सेवाग्राम आश्रम बना।
– 1937 में अस्पृष्यता निवारण अभियान के दौरान दक्षिण भारत की यात्रा।
– 1942 में भारत छाड़ो आन्दोलन का राष्ट्रव्यापी आह्वान, उनके नेतृत्व में अन्तिम राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह। 
– 1946 में ब्रिटिश कैबिनेट मिशन से भेंट- पूर्वी बंगाल के 49 गाँवों की शान्तियात्रा जहाँ साम्प्रदायिक दंगों की आग भड़कीं हुई थी।
– 1947 में साम्प्रदायिक शान्ति के लिये बिहार यात्रा। नई दिल्ली में लार्ड माउन्टबैटेन तथा जिन्ना से भेंट, कलकत्ता में दंगे शान्त करने के लिये उपवास तथा प्रार्थना।
– 1948 में जीवन का अन्तिम उपवास 13 जनवरी से 5 दिनों तक दिल्ली के बिड़ला हाउस में – देश में फैली साम्प्रदायिक हिंसा के विरोध में।
– 1948 में 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे द्वारा शाम की प्रार्थना के लियेजाते समय बिड़ला हाउस में हत्या।
1918 में खेड़ा सत्याग्रह
– ‘चम्पारन सत्याग्रह’ के बाद गाँधीजी ने 1918 ई. में खेड़ा (गुजरात) के किसानों की समस्याओं को लेकर आन्दोलन शुरू किया।
– खेड़ा में गाँधीजी ने अपने प्रथम वास्तविक ‘किसान सत्याग्रह’ की शुरुआत की थी। 
– खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा ज़िले में किसानों का अंग्रेज़ सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था। 
– यह महात्मा गांधी की प्रेरणा से वल्लभ भाई पटेल एवं अन्य नेताओं की अगुवाई में हुआ था।
1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार
– अमृतसर के जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को शाम को करीब साढ़े चार बजे एक सभा का आयोजन हुआ, इस सभा में 20,000 व्यक्ति इकट्ठे हुए थे। 
– दूसरी और जनरल डायर के नेतृत्व वाली अंग्रेजी सेना ने सभा को अवैधानिक घोषित कर दिया था।
– डायर ने बिना किसी चेतावनी के 50 सैनिकों को गोलियाँ चलाने का आदेश दिया, 10-15 मिनट में 1650 गोलियाँ दागी गईं।
– सरकारी अनुमानों के अनुसार, लगभग 400 लोग मारे गए और 1200 के लगभग घायल हुए थे।
1920 में असहयोग आंदोलन
– इसी संहार की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप गांधी जी ने 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया।
– सितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कलकत्ता में ‘कांग्रेस का अधिवेशन’ हुआ। 
– इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध असहयोग व सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया। 
– पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली। 
– इसी दौरान कई शिक्षण संस्थाएं जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि की स्थापना की गई।
1927 में साइमन कमीशन और 1928 लाला लाजपत राय का निधन
 असहयोग आंदोलन के खत्म होने के तुरंत बाद भारत की सरकार में नया कमीशन बनाया गया जिसमें सुधारों में किसी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया
– साइमन कमीशन की नियुक्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में की थी। 
– इस कमीशन में सात सदस्य थे, जो सभी ब्रिटेन की संसद के मनोनीत सदस्य थे।
– यही कारण था कि इसे ‘श्वेत कमीशन’ कहा गया। 
– कमीशन को इस बात की जाँच करनी थी कि क्या भारत इस लायक हो गया है कि यहां लोगों को संवैधानिक अधिकार दिये जाएं।
– इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया, जिस कारण इसका बहुत ही तीव्र विरोध हुआ।
– आयोग के विरोध के कारण लखनऊ में जवाहर लाल नेहरू, गोविन्द बल्लभ पंत आदि ने लाठियां खाईं। 
– लाहौर में लाला लाजपत राय के नेतृत्व में कई बड़े प्रदर्शन किए।
– लाहौर के पुलिस अधीक्षक स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया 
– उप अधीक्षक सांडर्स जनता पर टूट पड़ा उसकी लाठी की गहरी चोट के कारण लाला लाजपत राय की 17 नवंबर 1928 को मृत्यु हो गई।
1929 में सविनय अवज्ञा आंदोलन
– भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1929 में लाहौर अधिवेशन में घोषणा कर दी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है। 
– महात्मा गांधी ने अपनी इस माँग पर जोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। 
– जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-कानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था।
– ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को दबाने के लिए सख्त कदम उठाये और गांधी जी सहित अनेक कांग्रेसी नेताओं व उनके समर्थकों को जेल में डाल दिया।
1930 में दांडी मार्च
– सविनय अविज्ञा आन्दोलन के दौरान गांधी जी ने नमक कानून को तोड़ने के उदेश्य से दांडी मार्च किया
– 12 मार्च 1930 को सुबह 6.30 बजे 78 सत्याग्रहियों के साथ साबरमती आश्रम से दांडी तक 358 किमी की यात्रा आरंभ की।
– यात्रा का मुख्य उद्देश्य था- “अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए ‘नमक क़ानून को तोड़ना’ था।
– लगभग 24 दिन बाद 1 लाख लोगों के साथ 6 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक कानून को तोड़ा। 
– महात्मा गाँधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, डिंडौरी, वांज, धमन के बाद नवसारी को अपना पड़ाव बनाया था।
भारतीय स्वतंत्रता का क्रांतिकारी आन्दोलन
बम और पिस्तौल की राजनीति में विश्वास रखने वाले क्रान्तिकारी विचारधारा के लोग समझौते की राजनीति में कदापि विश्वास नहीं करते थे। उनका उद्देश्य था- ‘जान दो या जान लो।’ बम की राजनीति उनके लिए इसलिए आवश्यक हो गयी थी, क्योंकि उन्हें अपनी भावनायें व्यक्त करने या आज़ादी के लिए संघर्ष करने का और कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। आतंकवादी शीघ्र-अतिशीघ्र परिणाम चाहते थे। वे उदारवादियों की प्रेरणा और उग्रवादियों के धीमें प्रभाव की नीति में विश्वास नहीं करते थे। मातृभूमि को विदेशी शासन से मुक्त कराने के लिए वे हत्या करना, डाका डालना, बैंक, डाकघर अथवा रेलगाड़ियों को लूटना सभी कुछ वैध समझते थे। क्रान्तिकारी विचारधारा के सर्वाधिक समर्थक बंगाल में थे। उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के प्रति घृणा थी। वे बोरिया-बिस्तर सहित अंग्रेज़ों को भारत से बाहर भगाना चाहते थे। ‘वारीसाल सम्मेलन’ के बाद 22 अप्रैल, 1906 ई. के अख़बार ‘युगांतर’ ने लिखा, ‘उपाय तो स्वयं लोगों के पास है। उत्पीड़न के इस अभिशाप को रोकने के लिए भारत में रहने वाले 30 करोड़ लोगों को अपने 60 करोड़ हाथ उठाने होंगें, बल को बल द्वारा ही रोका जाना चाहिए।’ इन क्रान्तिकारी युवकों ने आयरिश आतंकवादियों एवं रूसी निहलिस्टों (अतिवादी) के संघर्ष के तरीकों को अपनाकर बदनाम अंग्रेज़ अधिकारियों को मारने की योजना बनाई। इस समय देश के अनेक भागों में, मुख्यतः, महाराष्ट्र एवं पंजाब में क्रान्तिकारी कार्यवाहियाँ हुई।
बंगाल में क्रान्तिकारी आन्दोलन- अगर यह मान लिया जाये कि बंगाल क्रान्तिकारी आन्दोलन का गढ़ था, तो अतिश्योक्ति न होगी। बंगाल में क्रान्तिकारी विचारधारा को बारीन्द्र कुमार घोष एवं भूपेन्द्रनाथ (विवेकानन्द के भाई) ने फैलाया। 1906 ई. में इन दोनों युवकों ने मिलकर ‘युंगातर’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया। बंगाल में क्रान्तिकारी आन्दोलन की शुरुआत ‘भद्रलोक समाज’ नामक समाचार पत्र ने की। इस समाचार पत्र ने क्रान्ति के प्रचार में सर्वाधिक योगदान दिया। पत्र के द्वारा लोगों में राजनीतिक व धार्मिक शिक्षा का प्रचार किया गया। बारीन्द्र घोष एवं भूपेन्द्रनाथ के सहयोग से ही 1907 ई. में मिदनापुर में ‘अनुशीलन समिति’ का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य था ‘खून के बदले खून’। ‘अनुशीलन समिति’ के अलावा बंगाल की ‘सुह्रद समिति’ (मायसेन सिंह), ‘स्वदेशी बांधव समिति’ (वारीसाल), ‘व्रती समिति’ (फ़रीदपुर) आदि क्रान्तिकारी गतिविधियों का संचालन करती थीं। अनेक क्रान्तिकारी समाचार पत्रों का भी बंगाल से प्रकाशन शुरु हुआ, जिसमें ब्रह्म बंद्योपाध्याय द्वारा प्रकाशित ‘सन्ध्या’, अरविन्द्र घोष द्वारा सम्पादित ‘वन्देमातरम’, भूपेन्द्रनाथ दत्त द्वारा सम्पादित ‘युगान्तर’ आदि प्रमुख थे। वारीसाल में पुलिस द्वारा किये गए लाठी चार्ज पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये ‘युगान्तर’ ने कहा कि ‘अंग्रेज़ सरकार के दमन को रोकने के लिए भारत की तीस करोड़ जनता अपने 60 करोड़ हाथ उठाए और ताकत का मुकाबला ताकत से किया जाये।’
बंगाल के एक और क्रान्तिकारी जतीन्द्र नाथ मुखर्जी थे, जिन्हें ‘बाघा जतिन’ के नाम से भी जाना जाता था। 9 सितम्बर, 1915 को बालासोर में पुलिस द्वारा मुठभेड़ में मारे गए। बंगाल के एक महान क्रान्तिकारी रासबिहारी बोस थे, जिन्होंने कलकत्ता से दिल्ली राजधानी परिवर्तन के समय लॉर्ड हार्डिंग पर बम फेंका था। गिरफ्तारी से बचने के लिए रासबिहारी बोस जापान चले गये थे। अवध बिहारी, अमीरचन्द्र, लाल मुकुंद, बसंत कुमार को गिरफ्तार कर इन पर ‘दिल्ली षड़यंत्र’ के तहत मुकदमा चलाया गया। बंगाल में बढ़ रही क्रान्तिकारियों की गतिविधियों के दमन हेतु सरकार ने 1900 ई. में ‘विस्फोटक पदार्थ अधिनियम’ तथा 1908 ई. में ‘समाचार पत्र अधिनियम’ का सहारा लेकर क्रान्ति को कुचलने का प्रयास किया। सरकार के दमन चक्र के चलते अरविन्द घोष क्रान्तिकारी क्रिया-कलापों को छोड़कर सन्न्यासी हो गए तथा पांडिचेरी में अपना आश्रम स्थापित कर लिया। ब्रह्म बंद्योपाध्याय, जिन्होंने सर्वप्रथम रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘गुरुदेव’ कहकर सम्बोधित किया था, रामकृष्ण मठ में स्वामी जी बन गए।
पंजाब में क्रान्तिकारी आन्दोलन- पंजाब में 1906 ई. के प्रारम्भ में ही क्रान्तिकारी आन्दोलन फैल गया था। पंजाब सरकार के एक ‘उपनिवेशीकरण विधेयक’ के कारण किसानों में व्यापक असन्तोष व्याप्त था। इसका उद्देश्य चिनाब नदी के क्षेत्र में भूमि की चकबन्दी को हतोत्साहित करना तथा सम्पत्ति के विभाजन के अधिकारों में हस्तक्षेप करना था। इसी समय सरकार ने जल कर में वृद्धि करने का फैसला किया, जिससे जनता में असन्तोष फैल गया। इस तूफ़ान को उठता देखकर सरकार बेचैन हो गई। उसने रावलपिन्डी में आन्दोलन को कुचलने की दृष्टि से सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगा दी तथा लाला लाजपत राय व अजीत सिंह को गिरफ्तार कर माण्डले जेल भेज दिया गया। 1915 ई. में पंजाब में एक संगठित आन्दोलन की रूपरेखा तैयार की गई, जिसमें निश्चित किया गया कि 21 फ़रवरी, 1915 को सम्पूर्ण उत्तर भारत में एक साथ क्रान्ति का बिगुल बजाया जाय। यह योजना सरकार को पता चल गई। अनेक नेता पकड़े गये तथा इन पर ‘लाहौर षड़यन्त्र’ का मुकदमा चलाया गया। इन नेताओं में पृथ्वी सिंह, परमानंद, करतार सिंह, विनायक दामोदर सावरकर, जगत सिंह, आदि देशभक्त थे। अमेरिका में ‘ग़दर पार्टी’ की स्थापना के बाद पंजाब ग़दर पार्टी की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गया था। अजीत सिंह ने लाहौर में ‘अंजुमन-ए-मोहिब्बान-ए-वतन’ नामक संस्था की स्थापना की तथा ‘भारत माता’ नाम से अख़बार निकाला।
महाराष्ट्र में क्रान्तिकारी आन्दोलन- महाराष्ट्र में क्रान्तिकारी आन्दोलन को उभारने का श्रेय लोकमान्य तिलक के पत्र ‘केसरी’ को जाता है। तिलक ने 1893 ई. ‘शिवाजी उत्सव’ मनाना आरम्भ किया। इसका उद्देश्य धार्मिक कम राजनीतिक अधिक था। महाराष्ट्र में 1893-1897 ई. के बीच प्लेग फैला व अंग्रेज़ सरकार ने मरहम लगाने के बजाय दमन कार्य किया। अतः 22 जून, 1897 ई. को प्लेग कमिश्नर आमर्स्ट की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस सम्बन्ध में दामोदर चापेकर को पकड़कर मृत्यु दण्ड दे दिया गया। तिलक को भी विद्रोह भड़काने के आरोप में 18 माह का कारावास दिया गया। 1908 ई. में बम्बई प्रांत के चार देशी भाषा के समाचार पत्रों पर सरकार ने कहर ढाया। 24 जून, 1908 ई. को तिलक को फिर गिरफ्तार किया गया और ‘केसरी’ में प्रकाशित लेखों के आधार पर पहले तो उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया, फिर 6 वर्ष की सज़ा दे दी गई। बम्बई में इसके विरोध में मज़दूरों ने जबरदस्त हड़ताल की, जो छह दिनों तक चली। महाराष्ट्र में नासिक भी क्रान्तिकारी आन्दोलन का गढ़ था। विनायक दामोदर सावरकर ने 1901 ई. में नासिक में ‘मित्रमेला’ नामक संस्था की स्थापना की, जो कि मेजिनी के ‘तरुण इटली’ के नमूने पर ‘अभिनव भारत’ में परिवर्तित हो गयी। इस संस्था के मुख्य सदस्य अनन्त लक्ष्मण करकरे ने नासिक के न्यायाधीश जैक्शन की गोली मारकर हत्या कर दी। इस हत्याकाण्ड से जुड़े लोगों पर ‘नासिक षड़यन्त्र केस’ के तहत मुकदमा चलाया गया, जिसमें सावरकर के भाई गणेश शामिल थे; जिन्हें आजीवन कारावास की सज़ा मिली। महाराष्ट्र से महत्त्वपूर्ण क्रान्तिकारी पत्र ‘काल’ का सम्पादन किया गया।
राम प्रसाद बिस्मिल:
11 जून, 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में श्री मुरलीधर और श्रीमती मूलमति के घर में इनका जन्म हुआ। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित “सत्यार्थ प्रकाश” से प्रेरित राम प्रसाद बिस्मिल आर्य समाज से जुड़े हुए थे और एक अच्छे देशभक्ति-कवि भी थे। “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है” आज भी हमारे रोंगटे खड़े कर देता है। ये ‘राम’, ‘अज्ञात’ और ‘बिस्मिल’ आदि नामों से हिंदी और उर्दू में कविताएं लिखते थे। हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन” की स्थापना का श्रेय बिस्मिल को ही जाता है। इन्होंने शुरू में ‘मातृवेदी’ नामक एक संगठन बनाया। इसका मानना था कि अंग्रेजों को जल्दी देश से निकालने के लिए हथियारों की मदद जरुरी है। इसी उद्देश्य से इन्होंने अपने एक क्रांतिकारी मित्र पंडित गेंदा लाल दिक्षित के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश के मैनपुरी इलाके में 1918 में लूट की जिसे “मैनपुरी कान्स्पिरेंसी” का नाम दिया गया। उसके बाद 1923 में इन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का गठन किया और अपनी आज़ादी की लड़ाई में सैंकड़ों क्रांतिकारियों को अपना साथी बना कर अपने मिशन पर चल दिए। अब इनका संगठन तो मजबूत और बड़ा बन गया लेकिन हथियारों की जरूरत को पूरा करने के लिए संगठन के सदस्य पैसे की मांग करने लगे। इसी के चलते इन्होंने एक बार फिर एक षड्यंत्र रचा और लखनऊ के नजदीक काकोरी स्टेशन के पास इन्होंने अपने साथियों के साथ मिल कर 9 अगस्त, 1925 को 8-डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रुकवा लिया, जिसमें अंग्रेज सरकार का सरकारी खजाना ले जाया जा रहा था और वहां बन्दूक की नोक पर इन लोगों ने एक बार फिर लूट को अंजाम दिया। इसके बाद बिस्मिल के संगठन के करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया और आपराधिक षड्यंत्र का अभियोग चलाया गया। गिरफ्तार होने वालों में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान मुख्य थे। यह लेख आप डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट नरेशजांगड़ा डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं। इन्हें ब्रिटिश सरकार ने फांसी की सजा सुना दी और 19 दिसंबर, 1927 के दिन राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में, अशफाकउल्ला खान को फैजाबाद जेल में और रोशन सिंह को नैनी जेल इलाहाबाद में फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया। राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को निर्धारित तिथि से 2 दिन पहले ही 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में सज़ा-ए-मौत दे दी गयी थी।
 
अशफाक उल्ला खान:
इनका जन्म भी शाहजहांपुर के एक पठान परिवार में 22 अक्टूबर, 1900 को हुआ। इनके पिता शफीक़ उल्ला खान और माता मज़हूर-उन-निसा बेग़म थीं। अशफाक की राम प्रसाद बिस्मिल के साथ बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी। दोनों ही हिंदी और उर्दू में देश भक्ति की कवितायें और शायरी लिखते थे। इन्होंने आज़ादी की लड़ाई में हमेशा बिस्मिल के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर साथ दिया। 1925 के काकोरी ट्रेन लूट केस में भी वे बिस्मिल के साथ ही थे और उनका नाम भी आरोपियों में शामिल था। 19 दिसंबर 1927 को फैजाबाद जेल में फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले की रात अशफाक ने कुछ पंक्तियाँ लिखीं और भारत माँ की आज़ादी के लिए अपनी तड़प को कुछ इस तरह से बयान किया:
“जाऊँगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ ही जायेगा, जाने किस दिन हिन्दोस्तान आज़ाद वतन कहलायेगा?
बिस्मिल हिन्दू हैं कहते हैं “फिर आऊँगा,फिर आऊँगा,फिर आकर के ऐ भारत माँ तुझको आज़ाद कराऊँगा”.
जी करता है मैं भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ,मैं मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूँ;
हाँ खुदा अगर मिल गया कहीं अपनी झोली फैला दूँगा, और जन्नत के बदले उससे एक पुनर्जन्म ही माँगूंगा.”
चंद्रशेखर आजाद : मातृभूमि के लिए दी प्राणों की आहुति 
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी एवं माता का नाम जगदानी देवी था। आजाद का जन्म स्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है। आजाद आजीवन ब्रह्मचारी रहे। वे 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की।
1920-21 के वर्षों में वे गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए, जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वन्दे मातरम्‌’ और ‘महात्मा गांधी की जय’ का स्वर बुलंद किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जब जज ने उनसे उनके पिता नाम पूछा तो जवाब में चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल बताया. यहीं से चंद्रशेखर सीताराम तिवारी का नाम चंद्रशेखर आजाद पड़ा.
इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए।जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और की आंखों में धूल झोंककर भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले, तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा। फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया।
जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया।
अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें  फांसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए इसी पार्क में 27 फरवरी, 1931 को उन्होंने स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी।
1931 में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा
– 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को ‘लाहौर षड़यंत्र'(यानी सांडर्स की हत्या का आरोप)में ब्रिटिश सरकार ने फांसी पर लटका दिया। 
– लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और शिवराम ने पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट को मारने की योजना बनाई थी। 
– उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को शाम करीब सवा चार बजे अपनी योजना को अंजाम दिया
– लेकिन गलत पहचान के चलते स्कॉट की जगह सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी़ सांडर्स मारा गया। 
– इस मामले को लाहौर षडयंत्र के नाम से जाना गया जिसमें राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। 
– ब्रिटिश हुकूमत ने इन तीनों क्रांतिकारियों को निर्धारित समय से एक रात पहले ही फांसी दे दी। 
– मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, लेकिन जन आक्रोश से डरी सरकार ने 23-24 मार्च को सांय 7.33 बजे ही फांसी दे दी।
– और रात के अंधेरे में ही सतलुज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया।
मुस्लिम लीग, जिन्ना और पाकिस्तान
– वैसे तो मुस्लिम लीग का गठन सर आगा खान के नेतृत्व में 30 दिसंबर 1906 को दक्का (अब ढाका) में हुआ था। 
– मुस्लिम लीग का मकसद भारत के मुसलमानों के राजनीतिक अधिकारों और हितों को आगे रखना था।
– शुरु शुरू में मोहम्मद अली जिन्ना अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल होने से बचते रहे
– लेकिन बाद में उन्होंने अल्पसंख्यक मुसलमानों को नेतृत्व देने का फैसला कर लिया।
– 1913 में जिन्ना मुस्लिम लीग में शामिल हो गये और 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की। 
– 1916 के लखनऊ समझौते के कर्ताधर्ता जिन्ना ही थे, यह समझौता लीग और कांग्रेस के बीच हुआ था। 
– लेकिन 1934 में मुस्लिम लीग की कमान संभालते ही जिन्ना का मकसद ही बदल गया।
– कहा एक केवल मुस्लिम लीग ही मुसलमानों का एक मात्र राजनीतिक साधन है।
– 1935 में जिन्ना की डॉ. राजेंद्र प्रसाद से चर्चा हुई, जिसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस किसी भी जाति,नस्ल या संसकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करती।
– हिन्दू और मुसलमान दोनों अलग-अलग देश के नागरिक हैं अत: उन्हें अलहदा कर दिया जाये। 
– उनका यही विचार बाद में जाकर जिन्ना के द्विराष्ट्रवाद का सिद्धान्त कहलाया।
– 1937 में हुए सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में मुस्लिम लीग ने कई सीटों पर कब्जा किया।
– 1930 में मुस्लिम लीग के एक भाषण में मोहम्मद इकबाल ने उत्तर पश्चिम भारतीय राज्य को अलग कर एक राष्ट्र बनाने की मांग की।
– 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पहली बार अलग राष्ट्र के लिए पाकिस्तान शब्द रखा।
– रहमत अली ने ही 1933 में पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट आरंभ किया, 1 अगस्त 1933 से पाकिस्तान नामक एक साप्ताहिक पत्र भी शुरू किया।
– 1940 के लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर यह कहा गया कि मुस्लिम लीग का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान का निर्माण है।
– कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, मौलाना अब्बुल कलाम आजाद जैसे नेताओं ने इसकी कड़ी निन्दा की। 
– जिन्ना ने 1941 में डॉन समाचार पत्र की स्थापना की, जिसके द्वारा उन्होंने अपने विचार का प्रचार-प्रसार किया। 
– जिन्ना ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की मदद की थी और 1942 में उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध किया था। 
– यूनियनिस्ट नेता सिकन्दर हयात खान की मृत्यु के बाद पंजाब में भी मुस्लिम लीग का वर्चस्व बढ़ गया। 
– 1944 में गान्धीजी ने बम्बई में जिन्ना से चौदह बार बातचीत की, लेकिन हल कुछ भी न निकला।
सुभाष चन्द्र बोस और आजाद हिन्द फौज
– द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज का गठन किया गया। 
– इसकी संरचना रासबिहारी बोस ने जापान की सहायता से टोकियो में की।
– शुरू में इस फौज़ में उन भारतीय सैनिकों को लिया गया था जो जापान द्वारा युद्धबन्दी बना लिये गये थे।
– एक साल बाद सुभाष चन्द्र बोस ने जापान पहुँचते ही जून 1943 में टोकियो रेडियो से घोषणा करते हैं कि अंग्रेजों से आजादी की आशा करना व्यर्थ है।
– 21 अक्टूबर 1943 के सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी
– इसे जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी।
– 30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया। 
– अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया।
– 4 फरवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।
– 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो से गांधीजी के नाम जारी एक प्रसारण किया और शुभकामनाएं मांगीं।
– 21 मार्च 1944 को ‘चलो दिल्ली’ के नारे के साथ आगे बड़े।
– 22 सितम्बर 1944 को उन्होंने कहा, हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की मांग है।
– किन्तु दुर्भाग्यवश युद्ध का पासा पलट गया, जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े। 
– ऐसे में सुभाष चन्द्र बोस को टोकियो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन
– 14 जुलाई 1942 में वर्धा में कांग्रेस कार्य समिति ने एक प्रस्ताव पास किया जिसमें भारत से ब्रिटिश शासन तत्काल समाप्त करने की घोषणा की गई।
– इसी मिटिंग में भारत छोड़कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने के लिए 1942 में सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का आवाह्न किया गया।
– सविनय अवज्ञा आन्दोलन का यह तीसरा चरण था, इससे पहले 1929 और 32 में आंदोलन हुआ था।
– 8 अगस्त 1942 को मुम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में कांग्रेस के सत्र में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया जिसे भारत छोड़ो प्रस्ताव के नाम से जाना गया।
– गोवालिया टैंक मैदान से गांधीजी ने भाषण दिया, जिसमें कहा, ‘मैं आपको एक मंत्र देना चाहता हूं जिसे आप अपने दिल में उतार लें, यह मंत्र है, ‘करो या मरो’।
– इसी गोवालिया टैंक मैदान आगे चलकर अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाने लगा।
– 9 अगस्त को गांधी, नेहरू, पटेल, आजाद समेत अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
– इसके बाद जनता ने खुद आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और इसे आगे बढाया क्योंकि उस समय नेतृत्व करने वाला कोई नहीं था।
– आंदोलन में रेलवे स्‍टेशनों, दूरभाष कार्यालयों, सरकारी भवनों तथा उपनिवेश राज के संस्‍थानों पर बड़े स्‍तर पर हिंसा शुरू हो गई।
– इसमें तोड़ फोड़ की ढेर सारी घटनाएं हुईं और सरकार ने हिंसा की इन गतिविधियों के लिए कांग्रेस और गांधी जी को उत्तरदायी ठहराया।
– कांग्रेस पर प्रतिबंद लगा दिया गया और आंदोलन को दबाने के लिए सेना को बुला लिया गया।
– सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 942 लोग मारे गये, 1630 घायल हुए, 18000 डीआईआर में नजरबंद हुए तथा 60229 गिरफ्तार हुए।
– इस बीच नेता जी सुभाष चंद्र बोस, जो अब भी भूमिगत थे, कलकत्ता में ब्रिटिश नजरबंदी से निकल कर विदेश पहुंच गए।
– ब्रिटिश राज को भारत से उखाड़ फेंकने के लिए उन्‍होंने वहां इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) या आजाद हिंद फौज का गठन किया।
– 1942 में जापान की फौजों के साथ मिल भारत की और रूख किया।
– ब्रिटिश और कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इम्फाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया।
– भारत छोड़ो आंदोलन की विशालता और व्यापकता को देखते हुए अंग्रेजों को विश्वास हो गया था कि उन्हें अब इस देश से जाना पड़ेगा।
द्वितीय विश्‍व युद्ध की समाप्‍ति और ब्रिटेन में लेबर पार्टी का सत्ता में आना
– 1945 में द्वितीय विश्‍व युद्ध समाप्‍त होने पर ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्‍लेमेंट रिचर्ड एटली के नेतृत्‍व में लेबर पार्टी शासन में आई।
– विश्‍व युद्ध की समाप्ति के समय ब्रिटिश आर्थिक रूप से कमज़ोर हो चुके थे
– वे खुद इंग्‍लैंड में स्‍वयं का शासन भी चलाने में संघर्ष कर रहे थे। 
– इसी साल ब्रिटेन के चुनावों में लेबर पार्टी लेबर पार्टी की जीत हुई 
– लेबर पार्टी आजादी के लिए भारतीय नागरिकों के प्रति सहानुभूति की भावना रखती थी।
– लेबर पार्टी ने भारत सहित ब्रिटेन में तत्‍कालीन उपनिवेश को स्‍वतंत्रता प्रदान करने का वायदा किया था। 
– मार्च 1946 में एक केबिनैट कमीशन भारत भेजा गया, जिसके बाद भारतीय राजनैतिक परिदृश्‍य का सावधानीपूर्वक अध्‍ययन किया गया।
– एक अंतरिम सरकार के निर्माण का प्रस्‍ताव दिया गया और एक प्रां‍तीय विधान द्वारा निर्वाचित सदस्‍यों और भारतीय राज्‍यों के मनोनीत व्‍यक्तियों को लेकर संघटक सभा का गठन किया गया।
भारत को कैसे मिली आजादी
– भारत को आजाद करने का फैसला ब्रिटेन की नई नवेली सरकार ने 20 फरवरी 1947 को ही कर लिया था। 
– इंग्लैंड में लेबर पार्टी के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री रिचर्ड एटली ने एक महत्वपूर्ण पॉलिसी की घोषणा की थी।
– इसमें कहा गया था कि ब्रिटेन की सरकार ने यह फैसला कर लिया है कि भारत को जून 1948 तक स्वतंत्र कर दिया जाएगा। 
– इसके लिए 12 फरवरी 1947 को ही लॉर्ड माउंटबैटन को भारत का वायसरॉय नियुक्त किया गया था।
– लॉर्ड माउंटबेटन का काम था ब्रिटेन के हाथों से भारत को सभी अथॉरिटी देने का प्रबंध करना। 
– 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी योजना देश के नेताओं के सामने प्रस्तुत की।
– जिसमे उन्होंने भारत की राजनीतिक समस्या को हल करने के विभिन्न चरणों की रुपरेखा रखी।
माउंटबेटन योजना
– भारत को भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया जायेगा
– बंगाल और पंजाब का विभाजन किया जायेगा 
– उत्तर पूर्वी सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जायेगा।
– पाकिस्तान के लिए संविधान निर्माण हेतु एक अलग संविधान सभा का गठन किया जायेगा।
– रियासतों को यह छूट होगी कि वे या तो पाकिस्तान या भारत में सम्मिलित हो जाये या फिर खुद को स्वतंत्र घोषित कर दें।
– भारत और पाकिस्तान को सत्ता हस्तांतरण के लिए 14-15 अगस्त 1947 का दिन नियत किया गया।
– ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 को जुलाई 1947 में पारित कर दिया। 
– इसमें ही वे प्रमुख प्रावधान शामिल थे जिन्हें माउंटबेटन योजना द्वारा आगे बढ़ाया गया था|
– सर रेडक्लिफ की अध्यक्षता में दो आयोगों का ब्रिटिश सरकार ने गठन किया।
– आयोग का कार्य विभाजन की देख-रेख और नए गठित होने वाले राष्ट्रों की अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं को निर्धारित करना था|
– स्वतंत्रता के समय भारत में 562 छोटी और बड़ी रियासतें थीं।
आजादी का दिन 15 अगस्‍त ही क्‍यों चुना गया
– लार्ड माउंटबेटन ने निजी तौर पर भारत की स्‍वतंत्रता के लिए 15 अगस्‍त का दिन तय करके रखा था 
– माउंटबेटन इस दिन को वे अपने कार्यकाल के लिए “बेहद सौभाग्‍यशाली” मानते थे। 
– इसके पीछे कि खास वजह थी कि इसी दिन जापानी सेना ने उनके सामने आत्‍मसमर्पण किया था।
– दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान माउंटबेटन ब्रिटिश सेनाओं के कमांडर थे।
आधी रात की आजादी
– जब 3 जून को यह फैसला किया गया कि 15 अगस्त को आजादी दी जाएगी तो भारतीय ज्योतिषियों ने इस पर एतराज किया। 
– उनके अनुसार यह दिन काफी अमंगल होता देश के लिए, लेकिन लॉर्ड तो इसी दिन के लिए अड़े हुए थे।
– इसलिए ज्योतिषियों ने कहा कि आजादी का समय 14 अगस्त रात 12 बजे हो।
– क्योंकि कैलेंडर के अनुसार 12 बजे से अगले दिन का आरंभ माना जाता है।
– अंग्रेज भी यह मानते हैं कि रात 12 बजे से दिन बदल जाता है, माउंटबेटन ने स्वीकार कर लिया।
– 14 अगस्त को आजादी की घोषणा होते ही मीटिंग बुलाई गई। 
– यह मीटिंग नई दिल्ली में रात 11 बजे बुलाई गई। 
– इस सेशन की अगुवाई डॉंक्टर राजेंद्र प्रसाद ने की। 
– मीटिंग का आरंभ सुचेता कृपलानी ने ‘वंदे मातरम्’ गाकर किया।
– 14 अगस्त की मध्यरात्रि को जवाहर लाल नेहरू का ऐतिहासिक भाषण हुआ ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’।
– इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना, लेकिन गांधी उस दिन नौ बजे सोने चले गए थे।
– 15 अगस्त के दिन की शुरुआत सुबह 8.30 बजे हुई, जब वायसराय भवन(राष्ट्रपति भवन) में शपथग्रहण समारोह हुआ। 
– नई सरकार ने सेंट्रल हॉल (जिसे आज दरबाल हॉल कहा जाता है)में शपथ ली।
– दोपहर में नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल की सूची सौंपी और बाद में इंडिया गेट के पास प्रिसेंज गार्डेन में एक सभा को संबोधित किया।
– पूरा देश आजादी का उत्सव मना रहा था, राष्ट्रपति भवन, संसद आदि के आसपास करोड़ों लोगों का हुजूम था।
– नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था।
– 17 अगस्त को भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा का निर्धारण हुआ था, जिसे रेडक्लिफ लाइन कहा जाता है
– भारत 15 अगस्त को आजाद जरूर हो गया, लेकिन उसका अपना कोई राष्ट्रगान नहीं था।
– रवींद्रनाथ टैगोर जन-गण-मन 1911 में ही लिख चुके थे, लेकिन यह राष्ट्रगान 1950 में ही बन पाया।
– एक तरफ देश में आजादी का जश्न था तो दूसरी तरफ हिंदू-मुस्लिम दंगों में खून की होली खेली जा रही थी
– महात्मा गांधी आज़ादी के दिन दिल्ली से हज़ारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे
– जहां वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन पर थे
– जब तय हो गया कि भारत 15 अगस्त को आज़ाद होगा तो जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को ख़त भेजा
– इस ख़त में लिखा था, “15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा. आप राष्ट्रपिता हैं. इसमें शामिल हो अपना आशीर्वाद दें”
– गांधी ने इस ख़त का जवाब भिजवाया, “जब कलकत्ते में हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं”
भारत-पाकिस्‍तान का विभाजन
– भारत और पाकिस्‍तान का बंटवारा महज 50 से 60 दिनों के भीतर लाखों लोगों का विस्‍थापन था, जो विश्‍व में कहीं नहीं हुआ। 
– 10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग एक देश की सीमा को पार कर दूसरे देश की सीमा में जा रहे थे। 
– तकरीबन पौने दो करोड़ लोग जमीन, जायदाद, दुकानें, संपत्‍ति, खेती छोडकर हिंदुस्‍तान से पाकिस्‍तान और पाकिस्‍तान से हिंदुस्‍तान लोग जा रहे थे।
– 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
– धर्म के नाम हुए इस विभाजन में मानवता शर्मसार हुई, 10 हजार से ज्‍यादा महिलाओं का अपहरण किया गया, उनके साथ बलात्‍कार हुआ।
– अनुमान के मुताबिक 2 लाख से 20 लाख के बीच लोग मारे गए, सैंकड़ों बच्‍चे अनाथ हो गए।
– विभाजन का यह काला अध्‍याय आज भी इतिहास के चेहरे पर बदनुमा दाग की तरह है।
ऐतिहासिक घटनाक्रम- एक नजर
1857- मेरठ में सैनिक विद्रोह 
1857- मेरठ में सिपाहियों और भीड़ द्वारा 50 यूरोपियों की हत्या 
1858- ईस्ट इंडिया कंपनी से शासन का ट्रांसफर ब्रिटिश राजशाही के पास
1858- रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच लड़ाई 
1876- महारानी विक्टोरिया भारत की साम्राज्ञी घोषित 
1885- बॉम्बे में एओ हयूम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की
1905- बंगाल का विभाजन 
1905- सूरत में स्वदेशी आंदोलन शुरु
1906- ढाका में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का गठन 
1908- राजद्रोह के आरोप में तिलक को छह साल की सजा
1909- मॉर्ले मिंटो सुधार, हिंदू और मुस्लिमों में मतभेद पैदा किए गए
1911- दिल्ली दरबार आयोजित, बंगाल का विभाजन रद्द 
1912- नई दिल्ली भारत की नई राजधानी बना 
1914- सेन फ्रांसिसको में गदर पार्टी का गठन
1914- महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट 
1915- मुंबई में गोपाल कृष्ण गोखले की मौत 
1916- तिलक द्वारा पुणे में पहली इंडियन होम रुल लीग का गठन 
1916- मद्रास में एनी बेसेंट द्वारा होम रुल लीग का नेतृत्व
1917- महात्मा गांधी द्वारा बिहार में चंपारण आंदोलन शुरु 
1918- खेड़ा सत्याग्रह 
1919- जलियावाला बाग नरसंहार 
1919- खिलाफत आंदोलन शुरु 
1920- असहयोग आंदोलन शुरु महात्मा गांधी
1920- कलकत्ता में गांधीजी द्वारा प्रस्ताव पारित जिसमें अंग्रेजों से भारत को अधिराज्य का दर्जा देने को कहा गया 
1922- चोरी-चौरा घटना 
1922- इलाहबाद में स्वराज पार्टी गठित 
1925- काकोरी में ट्रेन लूट
1925- बारडोली सत्याग्रह
1928- बॉम्बे में साइमन कमीशन का आगमन और अखिल भारतीय हड़ताल
1928- लाहौर में लाला लाजपत राय पर पुलिस ज्यादती और जख्मों के चलते उनकी मौत 
1929- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन आयोजित 
1929- लाहौर में ऑल पार्टी मुस्लिम कांफ्रेंस ने 14 सूत्र सुझाए
1929- दिल्ली में भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त ने सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली में बम फेंका 
1929- लाहौर में जवाहरलाल नेहरु ने भारतीय ध्वज फहराया 
1930- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषित किया 
1930- साबरमती दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु 
1930- लंदन में साइमन कमीशन की रिपोर्ट पार विचार हेतु लंदन में पहली गोल मेज बैठक 
1931- लाहौर में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी
1931- लंदन में महात्मा गांधी और लॉर्ड इरविन द्वारा गांधी इरविन पैक पर दस्तखत 
1931- लंदन में दूसरी राउंड टेबल बैठक
1932- बिना ट्रायल के गांधी विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार 
1932- लंदन में तीसरी राउंड टेबल कांफ्रेंस 
1935- भारत सराकर अधिनियम 1935 पास 
1937- भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत प्रांतीय चुनाव हुए 
1938- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हरीपुरा अधिवेशन हुआ 
1938- सुभाष चंद्र बोस को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया 
1939- त्रिपुरी अधिवेशन हुआ 
1939- सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया
1940- मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए लाहौर अधिवेशन 
1941- सुभाष चंद्र बोस ने भारत छोड़ा
1942- क्रिप्स मिशन का भारत आगमन
1942- भारत छोड़ो आंदोलन
1942- गांधीजी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेता गिरफ्तार
1942- आजाद हिंद फौज का गठन
1943- सुभाष चंद्र बोस ने भारत की अस्थाई सरकार के गठन की घोषणा
1944- भारतीय राजनीतिक नेताओं और वायसराय आर्किबाल्ड वेवलीन के बीच शिमला सम्मेलन 
1946- केबिनेट मिशन प्लान पास 
1946- संविधान सभा का गठन 
1946- नई दिल्ली में केबिनेट मिशन का आगमन 
1946- जवाहरलाल नेहरु ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला
1946- भारत की अंतरिम सरकार बनी 
1946- भारत की संविधान सभा का पहला सम्मेलन 
1947- ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने ब्रिटिश भारत को ब्रिटिश सरकार का पूर्ण सहयोग देने की घोषणा की 
1947- 12 फरवरी लार्ड माउंटबेटन भारत के वायसराय नियुक्त और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने 
1947- 15 अगस्त 1947 भारत आजाद
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