9 प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्त्व
साहितियक परिचय
जन्म-सन 1920, बरौनी गांव में
शिक्षा- इतिहास में शोèाप्रबंèा-शूद्रों का प्राचीन इतिहास
भाषा- अèािकांश लेखन अंग्रेजी में
लेखक वेफ अèािकांश ग्रंथों वेफ हिन्दी अनुवाद उपलब्èा
प्रमुख रचनाएं- भारतीय सामंतवाद प्राचीन भारत में विचार और संस्थाएं प्राचीन भारत में नगरों का पतन
प्रस्तुत लेख की प्रमुख विशेषताएं:
• 'प्रारंभिक भारत का परिचय पुस्तक वेफ उदèाृत
• प्राचीन भारतीय इतिहास वेफ अèययन की उपयोगिता पर प्रकाश (खर्च)
• वर्तमान समय में अपनी दिशा तय करने वेफ लिए अतीत का अèययन जरूरी
• हमारे देश का चारित्रिक वैशिष्टय
• आज वेफ लोकतांत्रिक की मांग-सामाजिक अन्याय, वर्गभेद, èार्माèाारित देश प्रतिमान की अप्रासंगिकता और अग्राáता
• समाज वैज्ञानिक लेखन का आदर्श रूप प्रस्तुत
• लेख में आवश्यकतानुसार पारिभाषिक और अवèाारणात्मक पदों का प्रयोग
प्रतिपाध
किसी भी देश वेफ अच्छे कार्य, जिन्हें परंपरा वेफ रूप में आने वाली पीढि़यां स्वीकार करती हैं और उन पर गर्व करती हैं वही उस देश की संस्कृति है। भारत देश में इस संस्कृति का विकास कब, कहां और कैसे हुआ, कृषि की शुरूआत कैसे हुर्इ, प्राकृतिक संपदाओं की खोज कैसे हुर्इ, उनका उपयोग कैसे किया गया, कतार्इ, बुनार्इ, èाातुकर्म की शुरुआत कैसे हुर्इ, जंगलों की सपफार्इ कैसे हुर्इ, ग्रामों, नगरों तथा राज्यों की स्थापना कैसे हुर्इ-इन सब विषयों की जानकारी ग्रहण कर हम जान सकते हैं कि जीवन किस प्रकार सुरक्षित और सुसिथर हुआ, मनुष्य ने अपनी आजीविका वेफ साèान कैसे जुटाए, मार्ग पर मनुष्य वेफ अग्रसर होने वेफ तथ्य को हम अèययन द्वारा ही जान सकते हैं। इसी प्रकार, हमारे देश में जो विभिन्न भाषाओं व लिपियों का विकास हुआ है, उसकी जड़ें भी अतीत में मिलती हैं जिनका विकास वर्तमान युग में भी हो रहा है। लेखक ने प्राचीन भारत वेफ इतिहास वेफ अèययन को कर्इ दृषिटयों से महत्वपूर्ण माना है क्योंकि इस अèययन वेफ द्वारा ही हम अपनी प्राचीन संस्कृति वेफ विषय में जान सकते हैं।
प्राचीन भारत वेफ इतिहास का यदि हम अèययन करें तो पता चलेगा कि भारतवर्ष में अनेक प्रजातियाँ जैसे-यूनानी, शक, छूण, तुर्क आदि रही हैं जिन्होंने भारत को अपना घर बनाया और इस देश की सामाजिक व्यवस्था, शिल्पकला, वास्तुकला और साहित्य वेफ विकास में यथा योग्य अपना योगदान दिया। उनकी विशेषता यह रही कि ये विभिन्न प्रजातियां सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से घुलमिल गर्इ इसलिए इनकी अलग-अलग पहचान नहीं की जा सकती। भारतीय संस्कृति में प्रत्येक दिशा वेफ उपादान समिमलित हैं। विभिन्न प्रदेशों की भाषाओं वेफ शब्द वैदिक ग्रंथों में मिलते हैं, इसी प्रकार संस्कृत और पालि वेफ अनेक शब्द प्राचीन तमिल ग्रंथ 'संगम में उपलब्èा होते हैं। भाषा वेफ साथ-साथ भारत में अनेक èार्म दृषिटगत होते हैं। विभिन्न भाषाओं और èामो± वेफ इस देश में अनेक विविèाताओं वेफ बावजूद आंतरिक एकता स्पष्ट रूप से झलकती है। इस देश का नाम हमारे प्राचीन वंशज 'भरत वेफ नाम पर पड़ा। इस देश वेफ राजा चक्रवर्ती कहलाए। देश में कभी-कभी राजनीतिक एकता का अभाव अवश्य रहा परंतु पिफर भी राजनीतिक ढांचा रहा, सभी ने भारत को उसवेफ अखंड रूप में देखा। प्राचीन महाकाव्य जैसे रामायण देश वेफ कौने-कौने में भकितभाव से पढ़े गए। इन दोनों महाकाव्यों की रचना मूलत: संस्कृत में हुर्इ थी, बाद में स्थानीय भाषाओं में भी इसे प्रस्तुत किया गया परंतु सारतत्व रहा। सामाजिक व्यवस्था की दृषिट से भी भारत में समानता लक्षित हुर्इ।
आèाुनिक काल में जो अनेक समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं, उनवेफ संदर्भ में भी भारत वेफ अतीत का अèययन आवश्यक माना जाने लगा है कि किस प्रकार प्राचीन भारत वेफ लोगों ने जीवन वेफ विभिन्न क्षेत्राों में प्रगति की परंतु यह भी सत्य है कि वेफवल अतीत वेफ बल पर हम आज वेफ ज्ञान-विज्ञान की उपलबिèायों का मुकाबला नहीं कर सकते। प्राचीन काल की अनेक वुफप्रथाएं, अनेक सामाजिक अन्याय आज अमान्य हो चुवेफ हैं। भारतीय सभ्यता वेफ विकास वेफ साथ-साथ उनमें अनेक परिवर्तन लक्षित हुए हैं इसलिए अतीत को लौटाकर हम सामाजिक विषमताओं को कायम नहीं रख सकते परंतु अतीत वेफ मर्म को समझकर हमें समझना होगा कि जो पुराने दुराग्रह, पुरानी मान्यताएं लोगों वेफ मन की गहराइयों तक पहुंचे हुए हैं, जो व्यकित और राष्ट्र वेफ विकास को रोकते हैं, उन्हें दूर करना होगा। जातिवाद और सम्प्रदायवाद, जो देश की एकता और प्रगति वेफ बाèाक हैं, उन्हें दूर करना होगा। अतीत वेफ उज्जवल रूप वेफ साथ-साथ हमें बाèाक तत्वों को पहचानना होगा।
प्रमुख विचार बिन्दु
प्रस्तुत लेख में डा. रामशरण ने प्राचीन भारतीय इतिहास वेफ अèययन वेफ महत्त्व पर प्रकाश डाला है क्योंकि इसवेफ द्वारा हम अपनी प्राचीन संस्कृति वेफ विषय में जान सकते हैं।
विभिन्न भाषाओं और लिपियों वेफ संदर्भ में लेखक का मत है कि किसी भी सभ्य समुदाय वेफ लिये लिखने का ज्ञान होना जरूरी है।
विविèा èार्म एवं संस्कृतियों की दृषिट से भारत में अनेक प्रजातियों का समिमश्रण है इसलिए अनेक विविèाताओं वेफ बावजूद आंतरिक एकता स्पष्ट रूप से झलकती है।
हमारे देश का नाम हमारे प्राचीन वंशज भरत वेफ नाम पर पड़ाऋ इसवेफ अतिरिक्त हिन्दुस्तान, हिन्द, इंडिया आदि नामों वेफ संदर्भ में भी लेखक ने विविèा संवेफत दिए हैं।
भारत की समस्त भाषाओं में भारतीय संस्कृति प्रèाान रचनाओं जैसे रामायण, महाभारत आदि को समान महत्त्व दिया जाना इसकी भाषात्मक एकता को दर्शाता है।
अनेक विशेषताओं से युक्त भारत में वचित्रा प्रकार की सामाजिक व्यवस्था उदित हुर्इ जिसने वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथा को जन्म दिया। उत्तर भारत से आरंभ होकर यह पूरे देश में व्याप्त हो गर्इ।
लेखक ने वर्तमान में अतीत को लौटा लाने वेफ प्रयास की समीक्षा करते हुए उस युग की वुफछ कमियों की ओर संवेफत किया है। जैसे-सामाजिक दृषिट से वर्ण एवं जाति का भेदभाव और पुराने लोकाचार, मान्यताएं, सामाजिक रूढि़यां, èार्म संबंèाी कर्मकांड आदि। आज ये सब समाज को इस तरह भ्रमित करते हैं कि व्यकित और राष्ट्र-दोनों का विकास अवरु( हो रहा है।
आज भी पुरुष प्रèाान भारतीय समाज स्त्राी को समुचित स्वाèाीनता और अèािकारों से वंचित किए हुए है। अत:
वर्तमान में अतीत पूर्णत: प्रासंगिक नहीं। उसवेफ दोषों को दूर करवेफ ही राष्ट्र की पूर्ण उन्नति संभव है।
पाठ में आए कठिन शब्दों वेफ अर्थ
• प्राचीन पुराना
• अèययन पढ़ना
• समुदाय समूह
• सम्पदा èान-संपत्ति
• èाातुकर्म खनिज पदार्थ आदि èाातु संबंèाी कार्य
• अन्तत: आखिर में
• अतीत बीता हुआ
• रोचक मनोरंजक, दिलचस्प
• संगम मिलन, संयोग
• वैशिष्टय विशेषता, विशिष्टता
• विलक्षण अलौकिक, असाèाारण
• उपादान ग्रहण, प्रयोग, कारण
• समेकित समिमलित
• संस्कृतेतर संस्कृत से अलग
• सम्ब( जुड़ा हुआ, बंèाा हुआ
• धोतक सूचक
• परिसर नदी, नगर, पर्वत आदि वेफ आस-पास की भूमि, नियम, सिथति, मौका
• प्रांगण आंगन
• संतति संतान
• यशोगान यश का गान, प्रशंसा करना
• अèािपति स्वामी, मालिक
• विजेता विजय प्राप्त करने वाला
• अभिलेख लेख, पत्थर आदि पर खुदा हुआ लेख
• कालक्रमेण समय की गति वेफ अनुसार
• आहलाद आनंद, खुशी
• चिन्तन विचार
• व्याप्त स्थापित, भरा हुआ
• पूर्ववत पहले वेफ समान
• प्रासंगिक प्रसंगवश किया गया
• संरक्षण रक्षा करने की क्रिया
• प्रतिमान प्रतिमूर्ति, नमूना
• निहायत अत्यèािक, बहुत ज्यादा
• अपात्राता अयोग्यता
• विषमता असमता, जटिलता
• प्रतिष्ठा सम्मान, गौरव, मान-मर्यादा
• संकीर्ण संयुक्त, संवुफचित, तंग
अनुच्छेद वेफ आèाार पर प्रश्न-उत्तर
वुफछ लोग प्राचीन संस्कृति और सभ्यता की ओर पिफर से लौटना चाहते हैं और भारत वेफ उज्जवल अतीत का गुणगान करते नहीं अèााते हैं। उन्हें कला-कौशल की प्राचीन वस्तुओं वेफ संरक्षण की उतनी चिन्ता नहीं है। वास्तव में वे समाज और संस्कृति का पुराना प्रतिमान स्थापित करना चाहते हैं। ऐसी सिथति में अतीत को ठीक से समझना निहायत जरूरी है। बेशक, प्राचीन भारत वेफ लोगों ने जीवन वेफ विभिन्न क्षेत्राों में प्रगति की, पर वेफवल अतीत की प्रगति वेफ बल पर ही हम आज वेफ ज्ञान-विज्ञान की उपलबिèायों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। इसमें संदेह नहीं कि प्राचीन भारतीय समाज में सामाजिक अन्याय व्याप्त था। निचले वणो±, विशेषत: शूæों और चांडालों, पर जिस तरह से अपात्राताएं थोप दी गर्इ थीं, वह आज वेफ विचार में बड़ा ही खेदजनक है। अगर पुरानी जीवन-प(ति में परिवर्तन न लाया जाए तो स्वभावत: वे सारी विषमताएं भी सर उठाएंगी ही। भारत में सभ्यता वेफ विकास की èाारा इन सामाजिक भेदभावों की वृ(ि वेफ साथ-साथ बही है। प्रकृतिमूलक कठिनाइयों पर विजय पाने में हमारे पूर्वजों को जो सपफलता मिली है, उससे हमें भविष्य के लिए प्रेरणा मिलती है, पर अतीत को पुन: लौटाने का अर्थ होगा, उन सामाजिक विषमताओं को कायम रखना जिनवेफ कारण हमारा देश चिरकाल से दुर्दशाग्रस्त रहा है। इसलिए सही ढंग से अतीत का मर्म समझना आवश्यक है।
प्रश्न-दलित वणो± पर थोपी गर्इ अपात्राताओं से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर-लेखक का आशय है कि प्राचीन भारत में निचले वणो±, विशेषकर शुद्रों और चांडालों वेफ साथ अमानवीय व्यवहार होता था, उनवेफ साथ सामाजिक भेदभाव का चलन था जो खेदजनक था, जिसवेफ कारण उनका जीवन दुर्दशा से ग्रस्त रहता था।
प्रश्न-सही ढंग से अतीत का मर्म समझना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-सही ढंग से अतीत का मर्म समझना आवश्यक है क्योंकि वर्तमान में अतीत पूर्णत: प्रासंगिक और ग्राá नहीं है। प्राचीन भारत वेफ लोगों ने जीवन वेफ विभिन्न क्षेत्राों में प्रगति की परंतु यह भी सच है कि सामाजिक अन्याय भी व्याप्त रहा। हमारे पूर्वजों ने प्रकृतिमूलक अनेक कठिनाइयों पर विजय पार्इ जिससे हम प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं परंतु सामाजिक विषमताओं से भी वे ग्रस्त रहे इसलिये आवश्यकता इस बात की है कि हम अतीत वेफ उज्जवल रूप को तो ग्रहण करें, साथ ही बाèाक तत्वों को पहचानकर उन्हें दूर भी करें। सभ्यता वेफ विकास वेफ साथ सामाजिक भेदभावों को न बढ़ने दें।
जातिवाद और सम्प्रदायवाद देश की एकता कायम रखने और उसे प्रगति वेफ रास्ते पर आगे ले जाने में बाèाक बने हुए हैं। जाति-प्रथा और पूर्वाग्रह पढ़े-लिखे लोगों वेफ मन में भी शारीरिक श्रम की प्रतिष्ठा को घुसने नहीं देती और सामान्य हित में एकताब( नहीं होने देती। महिलाओं को नागरिक अèािकार भले ही मिल गए हों, लेकिन समाज में युगों से दबी रहने वेफ कारण वे अपनी भूमिका निभाने में समर्थ नहीं हुर्इ है। निम्न वर्ग वेफ लोगों का भी यही हाल है। प्राचीन भारत वेफ अèययन से हम तह में पैठ लगा सवेफंगे, जिन पर जाति-प्रथा और महिला की पराèाीनता टिकी हुर्इ है और संकीर्ण संप्रदायवाद को बढ़ावा मिल रहा है।
प्रश्न-प्रस्तुत उदèारण किस पाठ से लिया गया है और इसवेफ लेखक कौन हैं?
उत्तर-प्रस्तुत उदèारण 'प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्त्व पाठ से लिया गया है ओर इसवेफ लेखक श्री रामशरण शर्मा हैं।
प्रश्न-जातिवाद और संप्रदायवाद का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-जाति विशेष को श्रेष्ठ बताने या पक्ष लेने की क्रिया को जातिवाद कहते हैं। भारत में अनेक जातियों को उच्च, मèयम व निम्न वर्ग में बांटकर देखा गया है। संप्रदाय का अर्थ है किसी विशेष मत, परंपरा या प्रथा वेफ अनुयायियों का समूह। ऐसे लोग वेफवल अपने संप्रदाय को ही विशेष महत्त्व देते हैं, अन्य संप्रदाय वालों से द्वेष करते हैं, अपने को श्रेष्ठ व दूसरों को हेय समझते हैं। ये दोनों ही वाद देश की एकता व प्रगति वेफ लिये बाèाा का काम करते हैं, 'वसुèौव वुफटुम्बकम की भावना को हानि पहुंचाते हैं।
प्रश्न-दुराग्रहों का क्या अर्थ है?
उत्तर-दुराग्रह का अर्थ है कि अनुचित रीति से किसी बात पर अड़ जाना। हमारे देश में संप्रदायवाद वेफ कारण महिलाओं व दलित वर्ण वेफ लोगों वेफ प्रति जो दुराग्रह अभी भी हैं, वे सभी को सामान्य हित में एकताब( नहीं होने देती। इन दुराग्रहों से यदि छुटकारा पाना है तो प्राचीन भारत वेफ इतिहास का अèययन कर संकीर्ण विचारों को दूर करने का प्रयास करना आवश्यक है। जड़ को समाप्त करवेफ ही ऐसी सिथति उत्पन्न की जा सकती है कि ये वुफरीतियाँ पिफर से न पनप पायें।
प्रश्न-विलोम शब्द बताइए - बाèाक, शारीरिक, हित, सामान्य, नागरिक, समर्थ, प्राचीन, पराèाीनता, संकीर्ण संसदीय।
उत्तर- बाèाक साèाक
शारीरिक मानसिक
हित अहित
सामान्य विशेष
नागरिक ग्रामीण
समर्थ असमर्थ
पराèाीनता स्वाèाीनता
संकीर्ण उदार
संसदिय असंसदीय
पाठ पर आèाारित प्रश्न-उत्तर
प्रश्न-प्राचीन भारतीय इतिहास का अèययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-प्राचीन भारतीय इतिहास का अèययन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें प्राचीन संस्कृति वेफ विषय में जानकारी मिलती है। साथ ही, सभ्यता का क्रमश: विकास कब हुआ, कैसे हुआ, प्राकृतिक संपदाओं वेफ संसर्ग से जीवन किस प्रकार सुरक्षित और सुसिथर हुआ, विभिन्न कार्य क्षेत्राों की शुरूआत कर किस प्रकार अपनी जीविका वेफ साèान जुटाए, प्राचीन लिपियों का विकास कैसे हुआ-इन सब दृषिटयों से हम अवगत होते हैं। देश में बाèाक बने तत्वों को पहचानने की समझ भी हम प्राप्त करते हैं। इस प्रकार यह अèययन प्रासंगिक बन जाता है।
आशय स्पष्ट कीजिए-
'कोर्इ समुदाय तब तक सभ्य नहीं समझा जाता जब तक वह लिखना न जानता हो।
लेखक कहना चाहते हैं कि सभ्यता वेफ विकास वेफ लिए लिखना जरूरी है। लिखना तभी संभव है जब लिपियों का विकास हो। लिखकर ही इतिहास को सुरक्षित रखा जा सकता है जिससे आने वाली पीढि़यां जान सवेफं कि उनवेफ पूर्वजों की क्या सबलताएं रहीं। उन्हीें से प्रेरणा ग्रहण कर व सजग रहकर सभ्य समाज विकास की दिशा में बढ़ सकता है।
'हमारे देश में विविèाताओं वेफ बावजूद एकता झलकती है।
हमारे देश में अनेक विविèाताएं लक्षित होती हैं-èार्म, संस्कृति, भाषा, सामाजिक रीति-रिवाजों वेफ आèाार पर, परंतु पूरे देश की जीवन प(ति इस प्रकार की है कि उसमें पारस्परिक समिमश्रण ऐसा हो गया है कि विविèाताओं वेफ बावजूद एकता झलकती है जो हमारे देश को विशिष्टता प्रदान करती है। पूरे देश को एक इकार्इ वेफ रूप में देखा व जाना जाता है। उदाहरण-
आशय स्पष्ट करने वेफ अभ्यास वेफ लिए अन्य महत्त्वपूर्ण स्थल
• भारत अनेकानेक मनुष्य प्रजातियों का संगम रहा है।
• प्राचीन भारतीय संस्कृति की विलक्षणता यह रही है कि इसमें उत्तर और दक्षिण वेफ तथा पूर्व और पशिचम वेफ सांस्कृतिक उपादान समेकित हो गए हैं।
• भारत वेफ सांस्कृतिक मूल्य और चिन्तन चाहे जिस किसी भी रूप में प्रस्तुत किए जाएं, उनका सारतत्व सारे देश में रहा है।
• अतीत की प्रगति वेफ बल पर ही हम आज वेफ ज्ञान-विज्ञान की उपलबिèायों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं।
• भारत में सभ्यता वेफ विकास की èाारा सामाजिक भेदभावों की वृ(ि वेफ साथ-साथ बही है।
• प्राचीन, मèय और उत्तरकाल की बहुत सी रूढि़याँ वर्तमान काल में भी हमारा पीछा करती आर्इ हैं।
• जब तक समाज से अतीत वेफ दुराग्रहों को दूर नहीं कर देंगे तब तक भारत तीव्र गति से आगे नहीं बढ़ सवेफगा।
अभ्यास वेफ लिए अन्य महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद
• प्राचीन भारत का इतिहास बड़ा रोचक है..............सापफ-सापफ पहचान भी नहीं सकते हैं।
• भारत प्राचीन काल से ही................भीतर से गहरी एकता झलकती है।
• देश में भाषात्मक और सांस्कृतिक एकता..............संस्कृत में ही लिखे जाते रहे हैं।
• भारतीय इतिहास की यह विशेषता है...............पूर्ववत चलते रहे।
• आèाुनिक काल में हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं...................मुकाबला नहीं कर सकते हैं।
• भारत में सभ्यता वेफ विकास की èाारा..................मर्म समझना आवश्यक है।
• पुराने लोकाचार, मान्यताएं, सामाजिक रीतिरिवाज............... दलित वर्ग वेफ लोगों का भी यही हाल है।
अभ्यास वेफ लिये पाठाèाारित प्रश्न
• सभ्य समुदाय किसे कहते हैं?
• लेखन लिपि का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए किन्हीं लिपियों और भाषाओं वेफ नाम लिखिए।
• प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या विशेषताएं हैं? पाठ वेफ आèाार पर स्पष्ट कीजिए।
• भारतीय संस्कृति वेफ संदर्भ में 'अनेकता में एकता किस प्रकार लक्षित होती है?
• 'भारतवर्ष नाम कैसे पड़ा? इसवेफ निवासियों वेफ लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाता है?
• चक्रवर्ती राजा किन्हें कहा जाता था?
• तीसरी-चौथी सदी वेफ उन दो राजाओं वेफ नाम बताइए जिन्होंने भारत देश की राजनीतिक एकता को स्थापित किया।
• भारतवर्ष वेफ लिए 'हिन्द नाम कैसे पड़ा?
• 'हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग पहले-पहल कहां मिलता है?
• भारतवर्ष की भाषा वेफ क्रमिक विकास का उल्लेख कीजिए।
• रामायण मूलत: किस भाषा वेफ ग्रंथ हैं?
• भारत वेफ सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार किन ग्रंथों वेफ माèयम से हुआ और कैसे?
• भारत वेफ अतीत का अèययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
• कृषि की शुरूआत होने से मानव जीवन सुरक्षित और सुसिथर कैसे हो गया?
• प्राकृतिक संपदाओं की खोज व उनवेफ उपयोग से लेखक का क्या तात्पर्य है।
• मनुष्य की जीविका वेफ साèान जुटाने में प्रकृति का क्या योगदान रहा?
• प्राचीन काल में किन लघु उधोगों की शुरूआत हुर्इ?
• लेखक ने भारत को किन मनुष्य-प्रजातियों का संगम कहा है?
भाषा संबंèाी प्रश्न
अर्थ स्पष्ट कीजिए:
जीवन-प(ति, सार्वभौम, विजय-पताका, वर्ण-व्यवस्था, जाति-प्रथा, राजकीय दस्तावेज़, उपनिवेशीय परिसिथति, वर्तमान में अतीत की प्रासंगिकता
विलोम शब्द लिखिए:
प्राचीन, वर्तमान, एकता, अखंड, विदेशी, अन्याय, विषमता, वृ(ि, आवश्यक, मान्य, दुर्भाग्य, तीव्र, बाèाक, सामान्य, हित, समर्थ, पराèाीन
पर्यायवाची शब्द लिखिए:
प्राचीन, खंड, व्यापक, विचित्रा, समर्थ
मूलशब्द व उपसर्ग बताइए:
सुसिथर, प्रजाति, प्रसि(, समिमश्रण, प्रभाव, प्रयत्न, सुदूर, प्रयोग, पराèाीन
मूलशब्द व प्रत्यय बताइए:
सुरक्षित, प्राकृतिक, प्रचलित, विकसित, भारतीय, सामाजिक, विलक्षणता, जातीय, भिन्नता, दार्शनिक, शासित, राजनीतिक, प्रभावित, दीक्षित, प्रासंगिक, èाार्मिक, शारीरिक, नागरिक
किन शब्दों वेफ मेल से ये शब्द बने हैं? लिखिए:
प्रत्येक, यथाशकित, संस्कृतेतर, पूवा±चल, यधपि, पुरावशेष, शब्दात्मक, समिमश्रण, भाषात्मक, उज्जवल, लोकाचार, दुराग्रह, पूर्वाग्रह।
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