कविता से पहले की कविता

बच्चे ने रखा पहला डगमगाता कदम
चहक सुनी गई घर भर में
तुम लिख रहे थे कविता
तुम देख नहीं सके पर
खिलखिलाहट तु्म्हारी कविता में आई—।
तुम्हारी कविता में उड़ते रहे दूर देश के सोनपंछी
बगुलों की कतारें ठीक उसी वक्त तुम्हारे ऊपर से गुजर गई
बच्चे अपने नाखून उनकी ओर करके पुकारते रहे
बगुले-बगुले चावल दे—
उनके नाखून में चावल का निशान उभरा कि नहीं
पता नहीं—।
पता नहीं तुम्हें मिली कि नहीं कविता की ज़मीन
कि जिस पर खींचा जा सके मनुष्य के भविष्य का नक्शा
रेखाओं को शब्दों में काटते और जोड़ते रहने के बीच
तुमने शायद देखा नहीं टूटा हुआ फर्श
जहां अक्सर अटक कर मुड़ जाता है तुम्हारी पत्नी का पैर—।
तुम्हारे भीतर खौलते रहे सवाल
जवाब किसी आग में झुलसते रहे जरुर
तुम्हारी कविता में बनी रही आंच लगातार, हर बार
तवे पर फूली हुई रोटी के भीतर की गरम हवा
हाथ पर आकर कैसी लगती है, तुम्हें इससे क्या—।
तु्म्हें शायद पता नहीं गमले में लगे गुलाब पर
आज ही आया है एक नया फूल
श्यामा तुलसी के चार नए पत्ते जो कल अाए थे
आज नुचे हुए गिरे पड़े हैं नीचे
तोरी की बेल पर पीले फूल के नीचे उभर रही है हरी संभावना—।
अमर रहे तुम्हारी कविता, गूंजता रहे संवाद सृष्टि में
किताबों में रखना इसे, दर्ज करना इतिहास में भी
तुम्हारी कविता में खिले रहें शब्द
तुम्हारे शब्दों की गंध बसी रहे जगत में
मुझे माफ करना, मैं इसे बाद में पढ़ता हूं—।

Comments

Popular posts from this blog