प्यासी धरती
प्यासी धरती मांगे पानी,
बोले मेघा गरजो बरसो,
मेरी आँचल सूख चुकी है,
कुछ बूंदो की प्यास मिटा दो,
धरती बोले मेघा से की,
अब आखों का पानी सूखा,
मेघा जबसे तू है रूठा,
हिमखण्ड के चरणों से जो, अमृत धारा बहती है,
उसके वेगो को तू बढ़ा दे,
विनती ये धरती करती है,
मेरी ममता की आँचल में,
जीवन के कई रूप पनपते,
रूठ गए हो जबसे मुझसे,
वो भी पानी को है तरसते,
प्यास के कारण जब वो रोते,
मेरी ममता छलनी होती,
आँखें मेरी हर पल रोती,
और तुझसे ये विनती करती…
मेरी आँचल सूख चुकी है,
कुछ बूंदो की प्यास मिटा दो….
दिन की बातें तुम न पूछो,
दिन तो भठ्ठी सी झुलसती,
तपिश में बीते सारी राते,
आखों से नींदे गुम जाती,
पानी के बिन जीना मुश्किल,
उस अमृत के तुम हो दाता,
कृपा करो मेघो के राजा,
कुछ बूंदो की प्यास मिटा दो.
प्यासी धरती मांगे पानी,
बोले मेघा गरजो बरसो,
मेरी आँचल सूख चुकी है,
कुछ बूंदो की प्यास मिटा दो,
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